आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।। तुह्मरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै।। अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी । The https://shivchalisas.com